झूठे मजे मे है और सच्चे कठघरे में , झूठे महफिलो मे है और सच्चे तन्हाइयो में ।
वो झूट बोल रहा था बड़े सलीक़े से। मैं ए’तिबार न करता तो और क्या करता। – वसीम बरेलवी
हम समझदार भी इतने है की उनका झूठ पकड़ लेते है , और उनके दिवाने भी इतने के फिर भी यकीन कर लेते है
बेहिसाब झूठ कहा तो खुदा मान बैठे। जरा सा सच बोल दिया बुरा मान बैठे।
सफर में वो तब तक साथ चलता रहा, जब तक उसकी हर एक झूठ को मैं सच समझता रहा।
दोपहर तक बिक गया, बाजार का हर एक झूठ और मैं एक सच लेकर शाम तक बैठा रहा।
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तेरी आँखों से तेरा झूठ दिखाई दे जाता है पर हम तुझे खोने के डर से उसे सच मानते हैं
अक्सर झूठ पर चलते हैं प्यार के रिश्ते सच सामने आते ही टूट जाते हैं
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झूट के आगे पीछे दरिया चलते हैं सच बोला तो प्यासा मारा जाएगा – वसीम बरेलवी
समेट कर ले जाओ अपने झूठे वादो के अधूरे किस्से , अगली मोहब्बत में तुम्हे फिर से इनकी जरूरत पड़ेगी ।
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