शहर की हलचल से दूर यहाँ मन को आराम है घर तो अपना गाव में ही है जनाब शहर में तो बस मकान है।

होती होंगी शहरों की शामे रंगीन, मेरे गांव की रातों में सुकून है।

गाँव नाप आते थे पूरा नंगे पाँव, पैर जलने लगे जबसे डिग्री सेल्सियस समझ आया।

कभी शहर है तो कभी गावं है, ये ज़िन्दगी है कभी धुप है तो कभी छाव है।

अपनेपन और सुकून की छांव, हम सबका अपना – अपना गांव।

जहां कुदरत की अपनी छांव है, जिसे अपना कह सकूं वह अपना गांव है!

शहरों में कहां मिलता है वो सुकून जो गांव में था, जो मां की गोदी और नीम पीपल की छांव में था -डॉ सुलक्षणा अहलावत

यूं खुद की लाश अपने कांधे पर उठाये हैं ऐ शहर के वाशिंदों ! हम गाँव से आये हैं -अदम गोंडवी

पूरी दुनिया से थक हार के एक गाँव ही तो था जहाँ में चैन से मर सकता था।

जब जलाती है ये धूप, बरगद का छाँव याद आता है, और जब आसरा छीन लेता है ये शहर, तब मेरा गांव याद आता है।

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