रस्ते कहाँ खत्म होते हैं जिंदगी के सफर में, मंज़िल तो वही है जहां ख्वाहिशें थम जाएँ।
जिन्दगी के सफर में गुजर चुके पल अब फिर नहीं आएंगे दिल-ए-तमन्ना होगी उनको फिर से जीने की मगर बस वो याद बनकर रह जायेंगे।
सफ़र का मज़ा लेना है तो सामान कम रखिए, जिंदगी का मज़ा लेना है तो अरमान कम रखिए।
कभी शहर है तो कभी गावं है, ये ज़िन्दगी है कभी धुप है तो कभी छाव है।
चुपचाप चल रहे थे जिंदगी के सफर में, तुम्हारी नजर पड़ी और गुमराह हो गए।
कुछ ज़रूरतें पूरी तो कुछ ख्वाहिशें अधूरी,
इन्ही सवालों के जवाब हैं ज़िन्दगी
जिन्दगी के सफर में ये बात भी आम रही की मोड़ तो आये कई मगर मंजिले गुमनाम रही।
अकेले ही तय करने होते है कुछ सफर हर सफर में हमसफर नहीं होते।
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अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं,
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं।
– “निदा फाजली”
क्या बताऊं कैसे गुज़र रही है राह-ए-ज़िंदगी, शामें तन्हा है और रातें अकेली।
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