बदलते लोग, बदलते रिश्ते और बदलता मौसम , चाहे दिखाई ना दे मगर महसूस जरूर होते है

अकेले रहने का भी एक अलग सुकून है ना किसी के वापस आने की उम्मीद, ना किसी के छोड़ जाने का डर

आज परछाई से पूछ ही लिया, क्यों चलते हो.. मेरे साथ.. उसने भी हंसके कहा ,और कौन है…तेरे साथ !!

अपनी तन्हाई में तनहा ही अच्छा हूँ मुझे ज़रूरत नहीं दो पल के सहारो की

जख्म कहां-कहां से मिले छोड़ इन बातों को, जिंदगी तू यह बता सफर कितना बाकी.

बिखरा वजूद, टूटे ख़्वाब, सुलगती तन्हाईयाँ, कितने हसीन तोहफे दे जाती है ये मोहब्बत।

वो कहतें हैं , बहुत मजबूरियाँ हैं वक़्त की, वो साफ़ लफ़्ज़ों में , ख़ुद को बेवफ़ा नहीं कहते.

एक दिन वक्त भी साथ बैठकर रोया मेरे, कहने लगा तू तो ठीक है बस मैं ही खराब हूं।

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धोखा देने के लिए शुक्रिया तुम ना मिलते तो दुनिया समझ में ना आती!

मोहब्बत ख़ूबसूरत होगी.. किसी और दुनियाँ में इधर तो हम पर जो गुज़री है.. हम ही जानते हैं..

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