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रॉयल एटीट्यूड शायरी

Floral Frame

अजीब सा ख़ौफ़ था उस शेर की आँखों में, जिसने जंगल में हमारे जूतों के निशान देखे थे.

दुश्मनों को सज़ा देने की एक तहज़ीब है मेरी, मैं हाथ नहीं उठाता बस नज़रों से गिरा देता हूँ।

ये मत सोचना की भूल गया होगा नाम, चेहरे और औकात सबकी याद है.

वो मंज़िल ही बदनसीब थी जो हमें पा ना सकी.. वरना जीत की क्या औकात जो हमें ठुकरा दे ।

मेरे बारे में अपनी सोच को थोड़ा बदल के देख​, ​मुझसे भी बुरे हैं लोग तू घर से निकल के देख​।

‘दम’ कपडो में नहीं, जिगर में रखो, बात अगर कपडो में होती, तो सफेद कफन में लिपटा हुआ मुदॉ भी ‘सुलतान मिजॉ’ होता.

इतने काबिल बनो कि लोग तुम्हें हराने के लिए कोशिश नहीं साजिश करें।

हारने वालो का भी अपना रुतबा होता हैं मलाल वो करे जो दौड़ में शामिल नही थे..

जैसा भी हूं अच्छा या बुरा अपने लिये हूं मै खुद को नही देखता औरो की नजर से..!!

हमसे जलने वाले भी कमाल के होते हैं, महफिले तो खुद की होती हैं पर चर्चे हमारे होते हैं

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