इतना मजबूत हूँ की हजारों मुसीबतें झेल सकता हूँ,
पर आज भी तुझे खोने से डरता हूँ
अजीब सी कशमकश है… डर ये है कि कही उसे खो ना दे,सच ये है कि कभी उसे पाया ही नहीं.
जिसे डर ही नहीं था मुझे खोने का, वो क्या अफ़सोस करता मेरे न होने का.
कर रहा हूँ तुम्हे पाने की तमाम कोशिशें तकदीर में न लिखी हो जुदाई, बस इस बात से डरता हूँ
ना जाने वो कौन सी डोर है जो तुझ संग जुड़ी है, दूर जायें तो टूटने का डर है, पास आयें तो उलझने का डर है
तुमको पाने की तमन्ना नहीं फिर भी खोने का डर है, कितनी शिद्दत से देखो मैनें तुमसे मोहब्बत की है।
ना जाने वो कौन सी डोर है जो तुझ संग जुड़ी है, दूर जायें तो टूटने का डर है, पास आयें तो उलझने का डर है
मैं दो चीजों से डरता हूँ एक तेरा रोने से, और दूसरा तुझे खोने से
तुम्हारी गलतियों का अहसास है मुझे फिर भी मैं चुप हूँ, डरता हूँ कहीं तुम रूठकर चली न जाओ
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तुझे खोने का डर शायरी
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