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ज़िन्दगी शायरी
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एक उम्र गुस्ताखियों के लिये भी नसीब हो, ये ज़िंदगी तो बस अदब में ही गुजर गई।
ऐ ज़िन्दगी मुझे कुछ मुस्कुराहटें उधार दे दे ! अपने आ रहे है मिलने की रश्म निभानी है
ये ना पूछना जिन्दगी खुशी कब देती है, क्योंकि शिकायतें उन्हे भी है जिन्हें जिन्दगी सब देती है।
एक साँस सबके हिस्से से हर पल घट जाती है, कोई जी लेता है जिंदगी किसी की कट जाती है।
रखा करो नजदीकियां जिन्दगी का कुछ भरोसा नही फिर मत कहना चले भी गऐ और बताया भी नही
जिन्दगी तेरे इश्क़ में कितनी दूर हम चल चुके, कहीं सुकूं मिला नहीं, कितने शहर बदल चुके।
जिन्दगी तेरी भी, अजब परिभाषा है ! सँवर गई तो जन्नत, नहीं तो सिर्फ तमाशा है
आराम से तन्हा कट रही थी तो अच्छी थी, ज़िन्दगी तू कहाँ दिल की बातों में आ गयी।
जिन्दगी की जिम्मेदारियों ने कम कर दी हमारी शरारते और लोग समझते हैं कि हम समझदार हो गये
मत सोच इतना ज़िन्दगी के बारे में, जिसने ज़िन्दगी दी है, उसने भी कुछ तो सोचा होगा !
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