हमेशा मेरे हिस्से ही क्यूँ आती है,
याद वाली सड़कें.. जिन पर साथ चले थे हम कभी.
बेतरह तनहा सा लगता है वो मोड़,
जहाँ हम मिले थे कई बार,
घर वालों से बेख़बर होकर.
याद वाली सड़कें.. जिन पर साथ चले थे हम कभी.
बेतरह तनहा सा लगता है वो मोड़,
जहाँ हम मिले थे कई बार,
घर वालों से बेख़बर होकर.
हमेशा मैं ही क्यूँ रह जाता हूँ अकेला,
घर के कमरों में तुम्हें ढूंढते हुए,
नासमझ उम्मीदों को झिड़की देता,
दरवाजे की और एक टक देखता,
इंतज़ार के दिन गिनता हुया.
हमेशा मुझसे ही क्यूँ खफा होते हैं,
चाँद, रात, सितारे… पूरी रात.
अनदेखे सपनों में उनिंदा रहता हूँ,
उनींद से मिन्नत करते बीत जाते हैं घंटे,
सुबह भी उतनी ही दूर होती है जीतने तुम.
हमेशा तुमसे ही क्यूँ प्यार कर बैठता हूँ ?
सारे लम्हे.. जब तुम होते हो,
सारे लम्हे.. जब तुम नहीं होते हो…