लौटकर आया हूँ फिर से मैदान मै? अंदाज वही है सिर्फ तरीका बदल गया है!
मेरा किरदार यूँ ही नहीं चमका मेरे दोस्त,
बहुत रगडा है जी भर के मुसीबतों ने मुझे !!
फर्क बहुत है तुम्हारी और हमारी तालीम में, तुमने उस्तादों से सीखा है और हमने हालातों से।
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मेरी हिम्मत को परखने की गुस्ताखी न करना पहले भी कई तूफानों का रुख मोड़ चुका हूँ।
मेरे बारे में अपनी सोच को थोड़ा बदल के देख, मुझसे भी बुरे हैं लोग तू घर से निकल के देख।
‘दम’ कपडो में नहीं, जिगर में रखो, बात अगर कपडो में होती,
तो सफेद कफन में लिपटा हुआ मुदॉ भी ‘सुलतान मिजॉ’ होता.
गुरुर और रुतबा जो कल था, वो आज है और आगे भी रहेगा मेरा Attitude कोई कैलेंडर नहीं जो हर साल बदल जाये
सही वक्त पर करवा देंगे हदों का अहसास,
कुछ तालाब खुद को समंदर समझ बैठे हैं !
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जैसा भी हूं अच्छा या बुरा अपने लिये हूं मै खुद को नही देखता औरो की नजर से..!!
हमसे जलने वाले भी कमाल के होते हैं, महफिले तो खुद की होती हैं पर चर्चे हमारे होते हैं
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