सब्र करना सीखा है मैने , इश्क-ए-मुहाब्बत मे

सब्र करना सीखा है मैने , इश्क-ए-मुहाब्बत मे……!!!
अब जाकर शामिल हुआ है , ये सिलसिला अपनी आदत मे……!!!
हिज्र की राते बहुत काटी है , वादा-ए-वस्ल पे यारो…..
फिर भी दिल आगे रहा है बढकर उनकी खिदमत मे……!!!
निगाहे दर पे थी , और कान थे किसी आहट पर……
किस तरह हमने गुजारी है जीस्त-शबे- फुर्कत मे……!!!
अब तो इँतजार की घडियाँ गुजर जाती है , पल-पल रोकर……
और उनका पैगाम तक भी नही अब तो मेरी किस्मत मे……!!!
वक्त-बे-वक्त की बात नही अब ये तन्हाई मेरी……
उम्र भर का दाग है दिल पर , इस खुशी की हसरत मे..

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