बहुत समय पहले की बात है ,
दो दोस्त बीहड़ इलाकों से होकर शहर जा रहे थे..
गर्मी बहुत अधिक होने के कारण
वो बीच-बीच में रुकते और आराम करते उन्होंने अपने साथ
खाने-पीने की भी कुछ चीजें रखी हुई थीं ।
जब दोपहर में उन्हें भूख लगी तो दोनों ने एक
जगह बैठकर खाने का विचार किया…
खाना खाते–खाते दोनों में किसी बात को लेकर बहस छिड
गयी. . और धीरे-धीरे बात इतनी बढ़ गयी कि एक दोस्त ने
दूसरे को थप्पड़ मार दिया ।
पर थप्पड़ खाने के बाद भी दूसरा दोस्त चुप रहा और कोई विरोध नहीं किया. . .।
बस उसने पेड़ की एक टहनी उठाई और उससे मिटटी पर लिख दिया,
“आज मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने
मुझे थप्पड़ मारा… ।”
थोड़ी देर बाद उन्होंने
पुनः यात्रा शुरू की
मन मुटाव होने के कारण
वो बिना एक-दूसरे से बात किये
आगे
बढ़ते जा रहे थे कि
तभी थप्पड़ खाए दोस्त के
चीखने की
आवाज़ आई ,
वह गलती से दलदल में फँस
गया था. . .।
दूसरे दोस्त ने तेजी दिखाते हुए
उसकी मदद की और उसे दलदल से
निकाल दिया. . .।
इस बार भी वह दोस्त कुछ नहीं बोला
उसने बस एक नुकीला पत्थर उठाया और एक
विशाल पेड़ के तने पर लिखने लगा,
”आज मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने मेरी जान बचाई। ”
उसे ऐसा करते देख दूसरे मित्र से रहा नहीं गया और उसने पूछा ,
“ जब मैंने तुम्हे थप्पड़ मारा तो तुमने
मिटटी पर लिखा और जब मैंने
तुम्हारी जान बचाई तो तुम पेड़
के तने पर कुरेद -कुरेद कर लिख रहे हो,
ऐसा क्यों ?”
दोस्त ने बहुत खूबसूरत जवाब दिया,
”जब कोई तकलीफ दे तो हमें उसे अन्दर तक नहीं बैठाना चाहिए
ताकि क्षमा रुपी हवाएं इस मिटटी की तरह ही उस तकलीफ को
हमारे जेहन से बहा ले जाएं ,
लेकिन जब कोई हमारे लिए कुछ अच्छा करे तो उसे इतनी गहराई से
अपने मन में बसा लेना चाहिए कि वो कभी हमारे जेहन से मिट ना सके।